रोज ब्युटी पार्लर
रोज ब्युटी पार्लर, जिल्हा कोर्ट चौक, चंद्रपूर रोड, राजश्री कॉन्व्हेंटच्या बाजूला, नवेगाव (गडचिरोली)
05-05-2024
" मौत के तो अनेक रास्ते है दोस्तों , जन्म केवल मां ही दे सकती है ।"
बात सन 1975 की है जब मै कक्षा छः में पढता था ।
रविवार का दिन था सरकारी बस में बैढकर मैं अपनी बडी बहन से मिलने उसकी ससुराल जा रहा था । मै आगे वाली खिडकी के साथ वाली सीट पर बैठा था और सामने रोड को देख रहा था । बस का ड्राइवर मुझे जानता था क्योंकी मै अक्सर उसको नमस्ते करता था जब भी उसकी बस मेरे स्कूल के आगे से गुजरती थी । बस एक गांव के बस स्टाप के बहुत करीब थी इसलिए बस की रफ्तार भी बहुत कम थी ।
अचानक दो छोटी बच्चियां (8-10 वर्ष की) जो खेतों से अपने घर आ रही थी रोड पार करने की कौशिशें करती है दोनों बच्चियों ने आधे से ज्यादा सडक पार कर ली थी और बस उनके करीब पहूंच चूकी थी ड्राइवर हार्न बजा रहा था । अचानक दोनों बच्चियां हडबडा गई और सडक पर इधर-उधर भागने लगी और छोटी लडकी बस के पिछले टायर के नीचे आ गई और अपनी जान गंवा बैढी । ड्राइवर तुरन्त बस रोक कर खिडकी से उतर कर बच्ची को देखने लगा और मै भी बहुत फूर्ती से नीचे उतरा और मैने बडी बच्ची का हाथ पकडकर सडक से उढाया जो छोटी बहन के दूसरी साइड पर पडी थी । वो लडकी बहुत घबराई हुई थी और वो मुझसे लिपट गई । उसको ये भी नही पता था कि वो कि उसकी छोटी बहन मर चुकी है । ये मेरी छोटी उम्र में पहला हादसा था जिसका मै प्रत्यक्ष गवाह था । लडकी के आंसुओं से मेरी शर्ट और बनियान गिली हो गई थी और मेरे हाथ पैर कांप रहे थे । चूंकि बस गांव के बस स्टैंड के आसपास थी और दुकानदार , ग्रामीण तथा बस की इंतजार में खडे लोग इस घटना को प्रत्यक्ष देख रहे थे तुरन्त बस के पास पहुंच गए और उस ड्राइवर (जो मृत बच्ची को निकाल रहे थे ) पर टूट पडे । कुछ समझदार लोगों ने ड्राइवर को लोगों से बचाया क्योंकि वे देख रहे थे कि ड्राइवर का इसमें बिल्कुल भी दोष नही है तभी किसी ने उन बच्चियों की मां को बताया जो सात-आठ महिने पहले ही विधवा हुई थी वो बदहवास हालत में वहां पहुंची और हाथ जोडकर सभी से विनती करने लगी कि मैने मेरी बेटी खोई है शायद इसकी उम्र इतनी ही थी लेकिन मै नही चाहती कि किसी बच्चे का बाप उनसे बिछूड जाए । इस ड्राइवर भाई को छोड दो मै इसके खिलाफ कोई कार्यवाही नही करूंगी क्योंकि मै एक मां हूं और ये भी किसी बुढी मां का बेटा होगा और मां का दर्द एक मां ही जानती है । हो सकता है इसकी मां में इतनी सहनशीलता बची ही ना हो । सभी ने उस विधवा औरत के फैसले की बहुत तारीफ की और उस ड्राइवर ने अपनी मृत्यु तक एक सगे भाई की तरह अपना फर्ज निभाया । हालांकि उस विधवा औरत का कोई सगा भाई भी नही था वे दो बहने ही थी ।
लडकी की मां ने इधर-उधर देखा शायद वो अपनी बडी बेटी को खोज रही थी । वो मेरे पास आई और मेरे सर पर अपना हाथ रखा और अपनी बेटी को अपने साथ ले गई । गांव वाले लडकी का प्राथिव शरीर उसके घर ले गए और बस अपने गंतव्य की तरफ रवाना हो गई और मैं अपनी बहन के घर पहूंच गया ।
वक्त गुजरता गया और मैंने कालेज से वायुसेना तक का सफर तय कर लिया । मै उस हादसे को लगभग भूल चुका था । 1984 में मेरी शादी हो गई । मुझे छः महीने तक पता नही चला कि मेरी शादी उसी लडकी से हुई है जो बचपन में उस हादसे की वजह से मुझसे लिपट गई थी । जिस गांव में ये हादसा हुआ था उसका मुझे केवल नाम याद था लेकिन उसी नाम से उसी सडक पर दो गांव आसपास बसे थे । शादी के छः महीने बाद मैं दूसरी बार अपनी ससुराल गया तो मेरे साले साहब मुझे अपने खेतों में घुमाने ले गए । जब मै उस बस स्टाप पर पहूंचा तो वह घटना मेरे मस्तिष्क में घुमने लगी क्योंकि बस स्टाप और आसपास की जगह में कोई खास परिवर्तन नही आया था ।
शाम को मैं ससुराल से अपनी पत्नि के साथ अपने घर आ गया । मेरे दिमाग में वही घटना घुम रही थी । रात को मैने अपनी पत्नि से उस घटना के बारे में पूछा तो वो मुझे विस्मित नजरों से देखने लगी , उसकी आंखों में कुछ सवाल तैरने लगे । उसने मुझसे पूछा आपको उस हादसे के बारे में किसने बताया है ? मैने कहा आज जब मैं आपके भाई के साथ आपके खेतों में जा रहा था तो बस स्टैंड को देखकर मुझे वह दुर्घटना याद आ गई । उसने फिर पूछा उस दिन क्या आप मेरे गांव के बस स्टैंड पर थे ? मैने कहा मै उसी बस में था जो एक लडकी का काल बनी थी । दूसरी लडकी को सडक से मैने ही उठाया था । अब तो मेरी पत्नि की हालत देखने लायक थी वह कुछ बोलना चाहती थी मगर उसकी आवाज नही निकल पा रही थी बस उसके होंठ फडफडा रहे थे । उसने तुरंत अपने आपको संभाला और मुझसे कहने लगी क्या आप उस लडकी को अब पहचान लोगे । मैने कहा मैने तो उस समय भी उसका चेहरा नही देखा था अब भला कैसे पहचान सकता हूं । पत्नि ने फिर शरारती व्यंग्य में मुझसे पूछा क्या आप उस लडकी से मिलना चाहते हो ? मैने कहा मिलने में तो कोई बुराई नही है हो सकता है वो लडकी भी मुझसे मिलना चाहती हो । पत्नि ने फिर मुझसे कहा अगर मैं उस लडकी से आपको मिला दूं तो आप मुझे क्या ईनाम दोगे ? मैने कहा सब कुछ तो आपको सौंप चुका हूं अब मेरे पास बचा ही क्या है ? इतना सुनकर उसकी आंखे भर आई और मेरी बांहों में सिमट कर बोली कितने भोले है आप जिसको छः महीने से दिल में बसा रखा है उसको पहचानते भी नही । मैने कहा दिल में बसने वाले अजनबी नही होते पगली ।
"आंखों से तो कोई भी औझल हो सकता है दिल से भला कौन निकल पाया है ।"
सुप्रभात , जय भारत
रोज ब्युटी पार्लर, जिल्हा कोर्ट चौक, चंद्रपूर रोड, राजश्री कॉन्व्हेंटच्या बाजूला, नवेगाव (गडचिरोली)
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