डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांचे तत्वज्ञान अणुबॉम्बपेक्षाही स्फ़ोटक ---प्रा. डी. के. साखरे
पंढरपूर :-भारतीय राज्यघटनेचे निर्माते, महामानव डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांचे तत्वज्ञान अणुबॉम्बपेक्षाही स्फ़ोटक असल्याचे प्रतिपादन दलित अत्याचार विरोधी कृती समितीचे संस्थापक अध्यक्ष प्रा. डी. के. साखरे यांनी केले.
शुक्रवार दिनांक 06 डिसेंबर 2024 रोजी डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांच्या 68 व्या महापरिनिर्वाण दिनानिमित्त पंढरपूर येथे आयोजित केलेल्या अभिवादन सभेत ते बोलत होते.
पुढे बोलताना साखरे म्हणाले की
,संपूर्ण जगाचा सत्यानाश करण्याची ताकद अणुबॉम्बमध्ये आहे तर नवीन जग निर्माण करण्याची ताकद डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांच्या तत्वज्ञानात आहे.बौद्ध धम्म हा विज्ञानावर आधारित आहे. जगामध्ये फक्त विज्ञान सत्य असून विज्ञानशिवाय जे कांही आहे ते सारे अज्ञान आहे.मनुष्यमात्राला पुनःर्जन्म नाही परंतु या देशाचे संविधान बदलण्यासाठी किंवा लिहण्यासाठी डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांनाच पुनःर्जन्म घ्यावा लागेल हे सूर्यप्रकाशा इतके सत्य आहे.
बाबासाहेबांमुळे आम्हाला हवे ते मिळाले -ऍड. सुहास माळवे
प्रारंभी भारतीय जनता पक्षाच्या ओबीसी मोर्चाचे प्रदेश सचिव ऍड. सुहास माळवे यांच्या हस्ते बाबासाहेबांच्या पुतळ्याला पुष्पहार अर्पण करून कार्यक्रमाची सुरवात करण्यात आली यावेळी बोलताना ऍड सुहास माळवे म्हणाले की, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर हे समग्र मानव जातीचे नेते होते. बाबासाहेबांच्या मुळे आम्हाला हवे ते सर्व कांही मिळाले.यावेळी आर. पी. आय. चे जेष्ठ नेते अप्पासाहेब जाधव, पंढरपूर तालुकाध्यक्ष संतोष पवार, मध्यवर्तीचे अध्यक्ष अमित कसबे, भारतीय जनता पक्षाच्या ओबीसी मोर्चाचे जिल्हाध्यक्ष विवेक खिलारे व आंबेडकरी चळवळीतील आघाडीच्या नेत्या वैशाली चंदनशिवे, मायाताई खरे, दैनिक अचूक निदानचे पंढरपूर तालुका प्रतिनिधी हणमंत आढाव, वंचितचे नेते राजाभाऊ शिंदे, पूजा चीतारे, बिरबल बाबर, गोरख कांबळे यांच्यासह मोठया संख्येने जनसमुदाय उपस्थित होता.
Mahakumbh Mela 2025: सनातन आस्था के सबसे बड़े आयोजन महाकुंभ 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित होने वाले महाकुंभ मेले में दुनिया भर से श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। यह एक ऐसा महापर्व है जो सभी प्रकार की सिद्धि देने के लिए प्रसिद्ध है।
कुंभ मेला चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर आयोजित किया जाता है – प्रयागराज के संगम किनारे, हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर, उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे और नासिक में गोदावरी नदी के पास। क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ हर 12 साल में ही क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे कई धार्मिक और ज्योतिषीय कारण हैं।
महाकुंभ 2025 का आयोजन 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। यह मेला पौष पूर्णिमा के दिन स्नान से शुरू होता है और महाशिवरात्रि के दिन अंतिम स्नान के साथ समाप्त होता है। इस दौरान चार प्रमुख स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित होता है, जिनमें से नासिक और उज्जैन में हर साल कुंभ मेला होता है, जबकि महाकुंभ इन चारों स्थानों पर बारह साल में एक बार आयोजित किया जाता है।
1. ज्योतिषीय कारण
महाकुंभ का आयोजन ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है, खासकर बृहस्पति और सूर्य की राशियों पर। बृहस्पति लगभग 12 साल में अपनी 12 राशियों का चक्कर पूरा करता है। जब बृहस्पति कुम्भ राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तब महाकुंभ का आयोजन होता है। इसी कारण यह महापर्व हर 12 साल में मनाया जाता है।
2. धार्मिक कारण
समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्त करने के लिए बारह दिव्य दिनों तक युद्ध हुआ था, जो मनुष्यों के बारह वर्षों के बराबर माना जाता है। यही कारण है कि महाकुंभ मेले का आयोजन भी हर 12 साल में एक बार होता है। इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि महाकुंभ के दौरान संगम में स्नान, दान, जप और तप करने वालों को पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है। कृपया किसी भी धार्मिक या ज्योतिषीय गतिविधि को अपनाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
Vegetarian Village In India: बिहार के गया जिले में स्थित बिहिआइन गांव अपनी 300 साल पुरानी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यह गांव पूरी तरह से शाकाहारी है, जहां करीब 400 लोग निवास करते हैं। यहां के लोग न केवल मांस, मछली या अंडा, बल्कि प्याज और लहसुन का भी सेवन नहीं करते। यही नहीं, मदिरा का सेवन भी इस गांव में पूरी तरह वर्जित है। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और आज भी इसे पूरी श्रद्धा से निभाया जा रहा है।
गांव में स्थित ब्रह्म स्थान का गहरा धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि ब्रह्म बाबा की कृपा पाने और उनके कोप से बचने के लिए गांव वालों ने मांसाहार और मदिरा का त्याग किया। कहा जाता है कि 300 साल पहले एक घटना के बाद गांव के लोगों ने मांस-मदिरा का सेवन त्यागने की शपथ ली, जिसके बाद से ब्रह्म बाबा यहां विराजमान हो गए। उनका पिंड स्वरूप आज भी गांव के आस्था का केंद्र है।
गांव के बुजुर्गों के अनुसार, ब्रह्म बाबा ने कई बार गांव की रक्षा के लिए चमत्कार दिखाए। एक बार जब अखंड यज्ञ के दौरान मूसलाधार बारिश हो रही थी, तो बाबा ने यज्ञ स्थल को बारिश से बचा लिया। पूरे गांव में पानी भर गया, लेकिन यज्ञ स्थल सूखा रहा। इस चमत्कार के बाद से गांव वाले उनकी पूजा-अर्चना में कोई कमी नहीं रखते।
यहां आने वाली नई पीढ़ियां और गांव की बहुएं भी शाकाहारी जीवनशैली को अपनाती हैं। बिहिआइन गांव का यह वैष्णव जीवनशैली पालन बिहार में अन्य गांवों के लिए भी एक मिसाल है। ब्रह्म बाबा के आशीर्वाद से गांव में खुशहाली है, और लोग मानते हैं कि उनकी पूजा से रोग, दुख और जीवन की अन्य समस्याएं दूर होती हैं।
निष्कर्ष
बिहार के गया जिले का बिहिआइन गांव भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का एक अद्भुत उदाहरण है। 300 साल पुरानी परंपराओं और ब्रह्म बाबा की आस्था ने इस गांव को विशेष पहचान दी है। यह गांव आज भी शाकाहार और मदिरा त्याग की प्रेरणा देता है, जो आधुनिक समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है।
Baba Bageshwar Dham: उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में बाबा बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र शास्त्री पर हमला हुआ है। यह घटना उनके द्वारा आयोजित जनता दर्शन और पदयात्रा के दौरान हुई। जानकारी के मुताबिक, मऊरानीपुर क्षेत्र में बाबा की पदयात्रा के दौरान कुछ असमाजिक तत्वों ने उनके ऊपर फूलों के साथ मोबाइल भी फेंका, जिसके कारण उनके चेहरे पर चोट आई। इस घटना का वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गईं हैं।
धीरेंद्र शास्त्री मऊरानीपुर में पदयात्रा कर रहे थे, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु उनसे मिलने के लिए पहुंचे। श्रद्धालुओं ने उनका अभिवादन किया और बातचीत की। साथ ही, कुछ लोग उन पर फूलों की वर्षा कर रहे थे। इसी दौरान, किसी ने फूलों के साथ छुपाकर मोबाइल फेंक दिए। बताया गया कि दो से तीन मोबाइल फोन बाबा की तरफ फेंके गए। एक मोबाइल शास्त्री ने उठाया और हाथ में लेकर भीड़ को दिखाया, साथ ही कहा, "फूलों के साथ मोबाइल फेंककर मारा है हमका।" इसके बाद, बाबा ने मोबाइल मिलने की जानकारी दी और टीम के साथ चल रहे श्रद्धालुओं को आगे बढ़ने का संकेत दिया।
घटना के बाद, पुलिस ने घटना की जांच शुरू कर दी है। इस संबंध में अधिकारियों ने पूरी जानकारी दी कि कोई बड़ा खतरा नहीं था और यह एक छोटी सी घटना थी। हालांकि, इस घटना ने भक्तों और जनता के बीच सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
Shri Mata Vaishno Devi: जम्मू के श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए लंबे समय से लंबित रोपवे परियोजना को शुरू करने का निर्णय लिया है। इस परियोजना से श्रद्धालुओं के लिए माँ वैष्णो देवी की यात्रा बेहद सरल और सुविधाजनक हो जाएगी।
यह परियोजना खास तौर पर उन श्रद्धालुओं के लिए वरदान साबित होगी, जिन्हें 13 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई चुनौतीपूर्ण लगती है। कटरा से माता के भवन तक की यात्रा में अब घंटों का समय नहीं लगेगा, बल्कि यह कुछ ही मिनटों में पूरी हो जाएगी।
श्राइन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, अंशुल गर्ग ने कटरा में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि यह परियोजना बुजुर्गों और दिव्यांग यात्रियों के लिए बेहद लाभकारी होगी। रोपवे के माध्यम से त्रिकुटा पहाड़ियों के मनोरम दृश्य भी श्रद्धालु देख पाएंगे।
पिछले साल माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए रिकॉर्ड 95 लाख श्रद्धालु पहुंचे थे। इतनी बड़ी संख्या में आने वाले भक्तों के लिए वर्तमान सुविधाएं अपर्याप्त साबित हो रही थीं। रोपवे परियोजना इस समस्या का समाधान करेगी और यात्रा का अनुभव अधिक आरामदायक बनाएगी।
परियोजना का खाका लगभग तैयार है। इसमें पर्यावरण और स्थानीय दुकानदारों की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा गया है। रोपवे ताराकोट मार्क को भवन क्षेत्र से जोड़ेगा, जिससे श्रद्धालुओं की पैदल यात्रा का समय और कठिनाई दोनों कम हो जाएगी।
श्राइन बोर्ड ने यह सुनिश्चित किया है कि परियोजना के दौरान पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचे। रोपवे की संरचना और संचालन इस तरह डिजाइन किए जाएंगे कि त्रिकुटा पहाड़ियों की प्राकृतिक सुंदरता बनी रहे।
रोपवे परियोजना के शुरू होने के बाद माता वैष्णो देवी की यात्रा न केवल आसान होगी, बल्कि श्रद्धालुओं के लिए एक यादगार अनुभव भी बनेगी।
Kurma Village: आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में स्थित कुर्मा गांव आधुनिकता से कोसों दूर, प्रकृति की गोद में बसा हुआ एक अनोखा स्थान है। यहां के लोग प्राचीन वैदिक परंपरा का पालन करते हुए एक सादा और आत्मनिर्भर जीवन जीते हैं।
कुर्मा गांव में कुल 56 लोग रहते हैं, जो पूरी तरह से वैदिक जीवनशैली अपनाते हैं। यहां के बच्चे गुरुकुल पद्धति के तहत पढ़ाई करते हैं, जहां वेद, पुराण और अन्य हिंदू ग्रंथों का ज्ञान दिया जाता है। गांव में एक शिक्षक हैं, जो संस्कृत, तेलुगु, हिंदी और अंग्रेजी की शिक्षा प्रदान करते हैं।
गांव के लोग मिट्टी, रेत और चूने से बने घरों में रहते हैं। घर बनाने में सीमेंट या लोहे का उपयोग नहीं होता। दीवारों की मजबूती के लिए रेत में नींबू, गुड़ और अन्य प्राकृतिक सामग्रियां मिलाई जाती हैं। ग्रामीण खेती भी पुराने तरीकों से करते हैं, जिसमें मशीनों और रासायनिक खादों का कोई स्थान नहीं है। यहां काले और लाल चावल की खेती होती है।
गांव में बिजली नहीं है, इसलिए पंखे, टीवी और मोबाइल फोन का उपयोग नहीं होता। यहां के लोग अपनी जीवनशैली में पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं। कपड़े धोने के लिए डिटर्जेंट की जगह प्राकृतिक केसर के रस का उपयोग किया जाता है।
2018 में अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण चेतना सोसायटी (ISKCON) के संस्थापक भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद और उनके शिष्यों ने इस गांव में अपनी कुटिया स्थापित की। यहां नियमित रूप से रामायण, वेद-पुराण और अन्य ग्रंथों पर आधारित आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
गांव में रहने वाले लोगों को सख्त नियमों का पालन करना होता है। सुबह 3:30 बजे उठकर दिव्य पूजा करना और दिन की शुरुआत भजन और प्रसाद ग्रहण करने से होती है। महिलाओं को यहां अकेले रहने की अनुमति नहीं है। वे केवल अपने पिता, पति या भाई के साथ ही गांव में रह सकती हैं।
कुर्मा गांव में रहने वालों के लिए आवास और भोजन निःशुल्क है। हालांकि, यहां रहने के इच्छुक लोगों को गांव की नियमावली का सख्ती से पालन करना होता है।
कुर्मा गांव भारत का एक ऐसा स्थान है, जहां वैदिक परंपरा, प्रकृति और सादगी का अद्भुत मेल देखने को मिलता है। यह गांव आधुनिक जीवनशैली से परे, एक शांत और संतुलित जीवन जीने का प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत करता है।
Birsa Munda Jayanti: दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) दिल्ली रिंग रोड स्थित बांसेरा पार्क के प्रवेश द्वार पर महान आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की 20 फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित की जाएगी। यह प्रतिमा उनकी 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में लगाई जा रही है, जिसे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 15 नवंबर को अनावरण करेंगे। इसी दिन को पूरे देश में "जनजातीय गौरव दिवस" के रूप में मनाया जाता है।
जानकारी के मुताबिक इस प्रतिमा का वजन लगभग 3,000 किलोग्राम है, और इसे दिल्ली में स्थापित करने का उद्देश्य बिरसा मुंडा के स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए योगदान को लोगों के सामने लाना है। उनके नेतृत्व में आदिवासी अधिकारों की रक्षा और वन संरक्षण के लिए किए गए संघर्ष को सम्मानित करने का प्रयास किया गया है।
बांसेरा पार्क का यह स्थान, जहां रिंग रोड, RRTS Station, ISBT, Nizamuddin Railway Station, Metro Station, NH-24, Barapullah Flyover, और DND फ्लाईवे जैसे महत्वपूर्ण परिवहन मार्ग जुड़ते हैं, एक प्रमुख मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट हब बनता है। इस स्थान पर प्रतिमा स्थापित करने से लाखों यात्रियों को भगवान बिरसा मुंडा की प्रेरणादायक छवि देखने का अवसर मिलेगा।
यह प्रतिमा पश्चिम बंगाल के दो अनुभवी मूर्तिकारों द्वारा बनाई गई है। दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशानुसार इस जयंती को उपयुक्त तरीके से मनाने के लिए प्रतिमा स्थापित करने का निर्णय लिया।
छठ पर्व के तीसरे दिन गुरुवार को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया गया। डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही अब शुक्रवार सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती 36 घंटे के निर्जला व्रत का पारण करेंगे। जिसके बाद छठ महापर्व का समापन हो जाएगा।
विभिन्न स्थानों पर बने छठ घाटों पर आस्था, उल्लास और समर्पण का अनूठा संगम नजर आया। यमुना घाट की रौनक देखते ही बन रही थी। दिल्ली में बड़ी संख्या में रहने वाले पूर्वांचलवासी अस्तांचल सूर्य व उनकी पत्नी प्रत्यूषा (सूर्य की आखिरी किरण) को अर्घ्य देने के लिए यमुना नदी के आइटीओ व कालिंदी कुंज घाट पर पहुंचे थे। वहीं दिल्ली के बाजार विशेष रूप से छठ पूजा के सामान से सजे हुए दिखाई दिए।
मालूम हो कि छठ महापर्व के तीसरे दिन यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य व प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर व्रतधारी छठ मइया को याद करते हैं। गुरुवार को छठ व्रतधारी शाम 4 बजे से ही यमुना नदी में पानी में खड़े होकर हाथ में धूपबत्ती लेकर सूर्य की उपासना करते दिखाई दिए। जैसे ही सूर्यदेव अस्त हुए और आसमान में लालिमा बिखरी तो व्रतधारियों ने घर में बना 'ठेकुआ' व फल को सूप व बांस की टोकरी में रखकर उन्हें अर्घ्य दिया। वहीं घर जाकर व्रतधारियों ने अपने-अपने घर कोसी भरी और रातभर छठ मइया के स्थान पर अखंड ज्योति जलाई। इस दौरान परिवार के लोगों ने मिलकर धूप से हवन भी किया।
Viral Video: भारतातील विविध मंदिरांमध्ये भक्तांच्या वेगवेगळ्या श्रद्धेचे प्रकार पाहायला मिळतात. प्रत्येक भक्ताचं देवावर विश्वास ठेवण्याचं आणि तो दर्शवण्याचं वेगळं तत्त्व असतं. कोणी देवाशी एकांतात संवाद साधतं, तर कोणी त्याच्यासमोर नतमस्तक होतं. पण काही वेळा या भक्तांच्या अंधश्रद्धेचं असं दर्शन घडतं की पाहणाऱ्यांनाही धक्का बसतो.
असाच एक प्रकार सध्या सोशल मीडियावर व्हायरल होणाऱ्या व्हिडीओमध्ये पाहायला मिळत आहे. मथुरेतील प्रसिद्ध बाँके बिहारी कृष्णमंदिरामध्ये एक अद्भुत आणि आश्चर्यकारक प्रसंग घडला. मंदिराच्या एका गजमुखातून पाणी बाहेर येत होतं, आणि भक्तांनी ते पाणी तीर्थ समजून पिऊ लागले. काहींनी ग्लासाने, काहींनी हाताने ते पाणी घेतलं, श्रद्धेनं डोळ्यांना लावलं आणि डोक्यावर फिरवलं. या भक्तांना वाटलं की हे पाणी म्हणजे देवाचं चरणामृत आहे, म्हणून ते आदराने पित होते.
प्रत्यक्षात हे पाणी मंदिरातील एअर कंडिशनरमधून बाहेर पडणारं पाणी होतं, ज्यामध्ये कोणताही धार्मिक अर्थ नव्हता. एका भक्तानं हे पाहून इतर भक्तांना या पाण्याची खरी ओळख सांगण्याचा प्रयत्न केला, पण त्यावर फारसा परिणाम झाला नाही. काही भक्तांनी जणू काहीच घडलं नाही अशा अविर्भावात हे पाणी तीर्थ समजून पिणं सुरूच ठेवलं.
X (पूर्वीचा Twitter) वर हा व्हिडीओ शेअर करताना कॅप्शनमध्ये लिहिलं आहे की, "इथं शंभर टक्के शिक्षणाची गरज आहे. लोकं एसीच्या पाण्याला चरणामृत समजून पिऊ लागली आहेत." या व्हिडीओला पाहून अनेक नेटकऱ्यांनी श्रद्धेच्या नावाखाली चालणाऱ्या अशा अंधश्रद्धेला विरोध दर्शवला आहे.
तीसरा हिमयुग-
पृथ्वी पर तीसरा हिमयुग आज से लगभग 2 लाख वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था,तीसरे हिम युग में पहले हिमयुग से अधिक और दूसरे से कम बर्फ कम समय तक पड़ी थी,आग को प्रयोग करने और खालों के वस्त्र बनाने के कारण, हिमयुग अपूर्ण मानव को अधिक नहीं सता पाया,रोंयेदार खालों के चोंगे पहनकर,वह ठण्ड में काम कर सकता था और अग्नि कुण्ड द्वारा सामूहिक रूप में आग का इस्तेमाल करता था,
कुछ पूर्ण मानव कालांतर में जो सफल संकरण अपूर्ण मानव की संतानों में हुए,उन संकरणों के फलस्वरूप 2 प्रकार के कुछ पूर्ण मानव विकसित हुए,आज से लगभग एक लाख वर्ष पूर्व संकरित,इनमें से कुछ पूर्ण मानव के अवशेष अफ्रीका,यूरोप और एशिया के अनेक स्थानों की खुदाई में सुरक्षित मिले हैं,उस समय तीसरा हिमयुग समाप्त हो गया था,उत्तरी गोलार्ध का जलवायु फिर से गरम हो गया था और गरम जलवायु के चौपाए पूरे यूरोप में रहने लगे थे,तीसरे और चौथे हिमयुग के बीच गरम जलवायु लगभग 1.25 लाख वर्षों तक रहा है,इस लंबे समय में कुछ पूर्ण मानव की संतान ने बहुत विकास किया था,उनकी एक नस्ल को विज्ञान में नियंडरथल (Neanderthal) मानव कहा जाता है,इसके 70 हजार वर्ष पुराने अवशेष उत्तरी अफ्रीका,यूरोप तथा उत्तरी एशिया में सुरक्षित पाए गए हैं.
उक्त पूर्ण से मानव ने,अपनी एक काम चलाऊ सभ्यता को जन्म दिया,इससे पूर्व मुर्दों को ऐसे ही छोड़कर कबीला चला जाता था, परंतु उन लोगों ने अपने मुर्दों को जमीन में गाड़ना आरंभ कर दिया,इसका मस्तिष्क कुछ और बढ़ गया था तथा अधिक जटिल हो गया था,इसके शरीर के बाल कुछ छोटे और कुछ कम होकर वर्तमान मानव की भांति,रोंये में बदल गए थे, मुंह के ऊपर भी बालों की संख्या कम हो गई थी, परंतु सर पर अभी भी वनमानुष जैसे ही बाल थे,इसकी गर्दन भी छोटी और खोपड़ी अभी भी चपटी थी,माथा भी अभी छोटा था,ठुड्डी भी नाममात्र की ही थी, मस्तिष्क का आकार,एक हजार
घन सेंटीमीटर से कुछ अधिक था,वह कड़े पत्थरों से सुंदर यंत्र बनाना सीख गया था,संगठित समूह के रूप में आहार एकत्रित करता था,मुर्दा कब्र में दबाते समय वह थोड़ा मांस आदि आहार,उसके साथ दफनाता था, उन कब्रों को वह बड़े पत्थरों से ढंकता था,इन पत्थर से ढकी कब्रों के कारण ही बड़ी संख्या में इनके अवशेष मिले हैं-
...." जनता "
दीपावली, जिसे दिवाली भी कहा जाता है, भारत का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्योहार है। यह रोशनी का पर्व है, जो अच्छाई की बुराई पर विजय, समृद्धि, और खुशहाली का प्रतीक है। इस लेख में हम दीपावली के धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक महत्व के साथ इसके पर्यावरणीय प्रभाव और आधुनिक तरीकों पर चर्चा करेंगे।
दीपावली का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
दीपावली हिंदू धर्म के साथ-साथ जैन, सिख, और बौद्ध धर्म में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है:
1. हिंदू धर्म: भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है।
2. जैन धर्म: भगवान महावीर के मोक्ष प्राप्ति के दिन के रूप में मनाया जाता है।
3. सिख धर्म: गुरु हरगोबिंद सिंह जी की रिहाई का दिन है।
4. बौद्ध धर्म: सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने की खुशी में मनाया जाता है।
दीपावली के पाँच दिन
दीपावली पाँच दिनों का त्योहार है, जिसमें हर दिन का अपना महत्व है:
1. धनतेरस: धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
2. नरक चतुर्दशी: इस दिन बुराई का नाश होता है।
3. दीपावली: लक्ष्मी और गणेश की पूजा की जाती है।
4. गोवर्धन पूजा: भगवान कृष्ण के गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा।
5. भाई दूज: भाई-बहन के प्रेम का पर्व।
पर्यावरणीय प्रभाव और ग्रीन दिवाली
फटाकों के इस्तेमाल से वायु और ध्वनि प्रदूषण होता है, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। ग्रीन दिवाली का उद्देश्य है कि हम बिना प्रदूषण के दीपावली मनाएं, जैसे कि बिना फटाकों के, प्राकृतिक सजावट, और पर्यावरण के अनुकूल तरीकों का इस्तेमाल।
दीपावली का आर्थिक महत्व
दीपावली के समय व्यापार में वृद्धि होती है। धनतेरस के दिन लोग बर्तन और आभूषण खरीदते हैं, जो व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाता है। इस समय खरीदारी के कारण बाजारों में भारी रौनक होती है।
निष्कर्ष
दीपावली का त्योहार केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह त्योहार हमें अंधकार से प्रकाश की ओर, बुराई से अच्छाई की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है। साथ ही, ग्रीन दिवाली का संदेश पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने में मदद करता है।
Diwali Wishes In Hindi 2024: भारत में दीपावली का त्योहार बहुत खास होता है। हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पर्व न केवल खुशियों और उल्लास से भरा होता है, बल्कि परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर मनाने का अवसर भी है। दिवाली का मतलब है बुराई पर अच्छाई और अंधकार पर प्रकाश की जीत। इस दिन लोग अपने घरों को दीयों और रंगोली से सजाते हैं, पटाखे फोड़ते हैं, और अपनों के साथ मिलकर मिठाइयाँ बाँटते हैं। ऐसे में आप भी अपने प्रियजनों को खास और स्नेहभरी शुभकामनाएं देकर उनकी दिवाली को और भी यादगार बना सकते हैं।
1. दीपों की रोशनी, खुशियों की बहार; चांदनी की चादर, अपनों का प्यार। मुबारक हो आपको दीपावली का त्योहार!
2. माँ लक्ष्मी का आपके घर में वास हो, आपके जीवन में अपार खुशियों का आगाज हो। दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं!
3. रौशन हो दीपक और सारा जहाँ, ले साथ आपके खुशियाँ और कामयाबी का कारवाँ। आपको दिवाली की हार्दिक बधाई!
4. दीप जलते रहे और मन से मन मिलते रहें, घर में सदा सुख-शांति का वास रहे। हैप्पी दिवाली 2024!
5. इस दिवाली, लक्ष्मी माँ का आपके घर आगमन हो और सुख-समृद्धि का वास हो। दिवाली की अनगिनत शुभकामनाएं!
6. दीपों की जगमगाहट आपके जीवन को रोशन करे, खुशियों और सफलता का हर सपना साकार हो। इस दिवाली आप सबके चेहरे पर सजी मुस्कान यूँ ही बनी रहे। शुभ दीपावली!
7. इस दिवाली माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद आपके घर को समृद्धि और आनंद से भर दे। हर दीपक आपके जीवन में नए सुख और समृद्धि का प्रकाश लाए। हैप्पी दिवाली!
8. इस साल की दिवाली आपके जीवन में खुशियों की बौछार लाए, और हर दिन नया उजाला फैलाए। आपको और आपके परिवार को दिवाली की अनंत शुभकामनाएँ!
9. जैसे दीयों की लौ हर अंधेरे को मिटाती है, वैसे ही आपके जीवन में हर निराशा का अंत हो और सिर्फ उम्मीदों की रौशनी बनी रहे। दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
10. आपका जीवन इस दिवाली की तरह ही रौशन हो, सुख-शांति और समृद्धि का हमेशा साथ बना रहे। इस खास दिन पर आपको और आपके परिवार को ढेर सारी खुशियाँ।
11. इस पावन पर्व पर आपकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हों, और हर दीपक आपके जीवन में नई ऊर्जा भर दे। आपको और आपके अपनों को दिवाली की अनंत शुभकामनाएँ!
12. रंगोली की सुंदरता, दीपों की रौशनी और पटाखों की गूँज आपके जीवन को खुशियों से भर दे। आपके घर में सदा सुख-शांति का वास हो। शुभ दीवाली!
13. जैसे दीयों से सजी ये रात प्यारी है, वैसे ही आपका जीवन हमेशा खुशी और आनंद से भरा रहे। इस दिवाली आपको ढेर सारी प्रेम और शुभकामनाएँ!
14. माँ लक्ष्मी की कृपा से आपका घर धन, ऐश्वर्य और खुशियों से भरा रहे। दीपावली का ये पर्व आपके हर सपने को पूरा करने का आशीर्वाद लाए। शुभ दीपावली!
15. इस दिवाली पर हर पल आपके जीवन को नई दिशा दे, रिश्तों में प्यार और आपके जीवन में सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहे। आपको और आपके परिवार को दिवाली की ढेर सारी शुभकामनाएँ!
इस दिवाली आप भी अपने प्रियजनों को इन विशेष संदेशों के माध्यम से शुभकामनाएं भेजकर उनके चेहरे पर मुस्कान ला सकते हैं। दिवाली केवल रोशनी का पर्व ही नहीं, बल्कि यह लोगों को एक-दूसरे के साथ प्रेम और सौहार्द बांटने का अवसर भी देता है।
बजरंग दल: हिन्दू संस्कृति और इसके उद्देश्य
बजरंग दल एक प्रमुख हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन है, जो विश्व हिन्दू परिषद (VHP) का युवा विंग है। इसकी स्थापना 1984 में उत्तर प्रदेश में हुई थी। बजरंग दल का नाम भगवान हनुमान से लिया गया है, जो हिन्दू धर्म में शक्ति, भक्ति और साहस का प्रतीक माने जाते हैं। यह संगठन हिन्दू धर्म, संस्कृति, और परंपराओं की रक्षा करने के उद्देश्य से काम करता है।
बजरंग दल का उद्देश्य और कार्य
बजरंग दल के कार्य मुख्यतः हिन्दू धर्म और संस्कृति की सुरक्षा के इर्द-गिर्द केंद्रित हैं। इसके प्रमुख उद्देश्यों में शामिल हैं:
1. गौ रक्षा: यह संगठन गौ रक्षा अभियान चलाता है, जो गोहत्या और गोतस्करी के खिलाफ कार्य करता है।
2. धार्मिक स्थलों की सुरक्षा: मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और उनकी देखरेख करना।
3. हिन्दू युवाओं में जागरूकता: हिन्दू धर्म के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यक्रमों का आयोजन।
4. राष्ट्रीय एकता और अखंडता: भारत की सांस्कृतिक एकता को बनाए रखना और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना। बजरंग दल और विवाद
बजरंग दल को कई बार विवादों का सामना भी करना पड़ा है। कई लोग इसे हिन्दू धर्म की रक्षा का समर्थक मानते हैं, जबकि अन्य इसे धार्मिक असहिष्णुता और हिंसा को बढ़ावा देने वाला संगठन मानते हैं। इसके कुछ कार्यों की आलोचना भी होती है, लेकिन इसके समर्थकों का मानना है कि यह संगठन हिन्दू संस्कृति की रक्षा में अहम भूमिका निभाता है।
निष्कर्ष
बजरंग दल भारत में हिन्दू संस्कृति, परंपराओं और धर्म की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध संगठन है। इसके समर्थक इसे हिन्दू धर्म के प्रति समर्पण और सुरक्षा का प्रतीक मानते हैं।
12 Jyotirlinga Name And Place: भारत, आध्यात्मिकता और धार्मिक आस्था की भूमि, भगवान शिव के अनन्य भक्तों के लिए एक पवित्र धरोहर समेटे हुए है—12 ज्योतिर्लिंग। यह 12 ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक यात्रा के केंद्र हैं, बल्कि वे शिव की अपार शक्ति और दिव्यता का साक्षात्कार करने के स्थान माने जाते हैं। प्रत्येक ज्योतिर्लिंग के पीछे अनोखी पौराणिक कथाएँ और अद्वितीय महत्व छिपा है, जो इसे खास बनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन से व्यक्ति के समस्त कष्टों का निवारण होता है और वह शिव की कृपा से मोक्ष प्राप्त कर सकता है। आइए, शिव की आराधना के इन 12 पवित्र स्थलों के अद्भुत रहस्यों और धार्मिक महत्त्व को विस्तार से जानें।
भारत में 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों का विशेष धार्मिक महत्व है। यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के भक्तों के लिए प्रमुख तीर्थस्थल हैं। इनका दर्शन करने से व्यक्ति को शिव की कृपा प्राप्त होती है। प्रत्येक ज्योतिर्लिंग एक विशेष कथा और धार्मिक मान्यता से जुड़ा हुआ है। यहाँ भारत के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों के नाम और स्थानों का विवरण दिया गया है।
सोमनाथ मंदिर भारत का पहला ज्योतिर्लिंग मंदिर है, जिसे चालुक्य शैली में बनाया गया है। यह मंदिर गुजरात के काठियावाड़ जिले के वेरावल क्षेत्र में अरब सागर के तट पर स्थित है। यहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु भगवान शिव का दर्शन करने आते हैं, और महाशिवरात्रि के मौके पर यहाँ खासतौर पर भारी भीड़ होती है।
आंध्र प्रदेश के कृष्णा नदी के किनारे स्थित मलिक्कार्जुन ज्योतिर्लिंग श्रीशैल पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व सतवाहन साम्राज्य से जुड़ा है, और छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी इस मंदिर की देखरेख में योगदान दिया था। इसके पास एक शक्तिपीठ भी स्थित है.
उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहाँ प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं। महाकालेश्वर की पूजा विशेष रूप से भस्म से की जाती है, जो इस मंदिर की अनूठी विशेषता है।
मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के किनारे मंधाता पर्वत पर स्थित है। यह तीन मंजिला मंदिर अपने अद्वितीय स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है और भक्तों के बीच लोकप्रिय है।
झारखण्ड के संथाल परगना क्षेत्र में स्थित बाबा बैधनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसे 51 शक्तिपीठों में भी शामिल किया गया है और भगवान शिव के भक्त इसे अत्यंत पवित्र मानते हैं।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग पुणे के खेड़ तालुका में स्थित है और भीमा नदी के पास समहाद्री पर्वत के करीब है। यह मंदिर अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व का प्रतीक है।
तमिलनाडु के कन्याकुमारी क्षेत्र में स्थित रामेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अत्यधिक है। भगवान राम और विभीषण की पहली मुलाकात यहाँ हुई थी, और वानर सेना के लिए बनाए गए 24 कुएँ आज भी इस मंदिर की शोभा बढ़ाते हैं।