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25-12-2023
History of ramtek Mandir: जय श्री राम। यह रामटेक, नागपुर के उत्तर दिशा में स्थित है। रामटेक शहर का ऐतिहासिक नाम तपोगिरि था। रामटेक का अर्थ है "श्री राम जी ने राक्षसों के संहार हेतु प्रतीक्षा की थी"। टेक का अर्थ है "प्रतिज्ञा"। इस भव्य मंदिर का निर्माण रामचंद्र जी यादव और उनके भ्राता कृष्ण देव जी यादव ने 12वीं शताब्दी में किया था, ऐसा उल्लेखित है।
भगवान श्री राम जी, सीता माता और लक्ष्मण जी वनवास के लिए अयोध्या से निकलकर कांकेर, बिलासपुर, राजीव, सबरीनारायण तीर्थ स्थलों से होकर रामटेक आए थे। आगमन के पश्चात उन्होंने पंचवटी, नाशिक के लिए प्रस्थान किया। ऋषि शुक्राचार्य के श्राप के कारण राजा दंड के राज्य, अर्थात तपोगिरि में भीषण अकाल पड़ा। इसी समय तीन मायावी राक्षस अतावी, प्तावि, और इलव का उत्पात चरम पर था। वे अति हिंसक थे और ध्यान में बैठे ऋषि-मुनियों की हत्या कर देते थे। इन राक्षसों के कारण ऋषि-मुनि तपोगिरि छोड़कर जाने लगे। समय बीतने के साथ जब ऋषि-मुनि को ज्ञात हुआ कि श्री राम जी का तपोगिरि में आगमन होने वाला है, तो सभी ऋषि-मुनि श्री राम जी के दर्शन के अभिलाषी थे, किंतु राक्षसों के उत्पात से भयभीत थे।
यह बात महामुनि अवस्थी को भी ज्ञात थी कि विष्णु अवतार श्री राम तपोगिरि से होते हुए पंचवटी, नाशिक जाएंगे। महामुनि अवस्थी को श्री राम जी से मिलना था क्योंकि श्री राम जी ने ब्राह्मण रूप में उन्हें शक्ति दी थी। राम अवतार में रावण वध हेतु उन्हें यह शक्ति वापिस करनी थी। इसी समय उनके ससुर, विदर्भ राज को तपोगिरि के राक्षसों से त्रस्त ऋषियों ने अपनी समस्या से अवगत कराया। विदर्भ राज ने राक्षसों के वध हेतु ऋषि अवस्थी को आमंत्रित किया। तपोगिरि आगमन पर उन मायावी राक्षसों ने ऋषि अवस्थी के साथ भी दुर्व्यवहार किया और इसी कारण ऋषि अवस्थी ने उन राक्षसों का सर्वनाश किया।
तत्पश्चात, ऋषि अवस्थी एवं अन्य ऋषि-मुनि तपोगिरी पर्वत पर श्री राम जी की प्रतीक्षा करने लगे। जब श्री राम जी का तपोगिरी पर्वत पर आगमन हुआ, तब अवस्थी शिष्य सुदीक्षित भी साथ में थे। भगवान राम को इस पर्वत पर हड्डियों के छोटे-छोटे टुकड़े दिखाई दिए। यहीं पर श्री राम जी और ऋषि अवस्थी की भेंट हुई थी। भेंट के पश्चात, जब प्रभु राम जी पंचवटी प्रस्थान कर रहे थे, तब ऋषि अवस्थी ने अपनी ब्राह्मण अवतार की शक्ति उन्हें लौटाई। इसके साथ-साथ महामुनि ने सूर्य मंत्र अर्थात आदित्य ह्रदय महामंत्र भी इसी तपोगिरी पर्वत पर दिए थे। उन्होंने रावण के साथ होने वाले युद्ध का प्रभु राम को पुनः स्मरण कराया।
यह वही स्थान है जहां अवस्थी मुनि ने समाधि ली थी और आज भी उनकी समाधि से लगातार धुआं निकल रहा है, अर्थात आज भी ऋषि अवस्थी विराजमान हैं और यहां अखंड ज्योति प्रज्वलित है। यह स्थान वही है जहां प्रभु श्री राम जी का पहला मंदिर है। इस मंदिर में प्रभु श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण जी की मूर्तियाँ स्थापित हैं। रामचरण जी यादव और कृष्ण देव जी यादव द्वारा निर्मित यह मंदिर रहित बेल, चुना और रुई से बनी प्राचीन मूर्तियों को समेटे हुए है।
आज भी भारतवर्ष के कोने-कोने से असंख्य भक्तगण यहां दर्शन हेतु आते हैं। जय श्री राम 🙏🙏🙏
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