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27-06-2024
Parent Child Relationship: दोस्तों बच्चों से बात करना लगभग सबको पसंद होता है. इसलिए हम कई बार उनसे लाड-लड़ाते है, उनकी तारीफ करते है, तो कभी उन्हें युहीं मजाक मजाक में छेड़ देते है. परे ये तारीफ यब मजाक बच्चे को मन ही मन में परेशान भी कर सकता है. इसलिए समझ लीजिए की बच्चे को कब और क्या बोलना चाहिए.
बच्चों के मन पर कब कोनसी बात असर कर जाए कोई बता नहीं सकता इसलिए आप उन्हें कब क्या कह रहे हैं इसके बारे में जरूर सोचे. और हम आज आपको इसीके बारे बताने जा रहे है की, बच्चों को कब क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं बोलना चाहिए. तो दोस्तों आइए जानते है इसके बारे में.
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अक्सर देखा होगा बचपन में जिस बच्चे का वजन ज्यादा होता है उसे मोटू, गोल, गोला जैसे नामों से पुकारने लगते हैं. वहीं जिनका वजन कम होता है उसे कहते है कि तुम खाते नहीं हो क्या तुम इतने पतले क्यों हो? ये साधारण से लगने वाले शब्द बच्चे के मन पर गहरा असर बल सकते हैं. वे स्वयं के वजन को लेकर ना सिर्फ परेशान हो सकते हैं बल्कि समय के साथ उनमें आत्मविश्वास की कमी और टिंग डिसऑर्डर भी देखने को मिल सकता है. और ध्यान रखें ऐसी बातों का मजाक ना बनाएं जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता.
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बच्चों से मिलने पर लोग सबसे पहले स्कूल के बारे में पूछते हैं फिर शिक्षक और सहपाठियों के बारे में इसके बाद जैसे ही बच्चे अपने अपोजि सेंडर (विपरीत लिंग) मित्र की बात करते हैं तो लोग उन्हें उसके नाम से मजाक चिढ़ाने लगते है. कि वो तुम्हारी गर्ल फ्रेंड है या वो लड़का तुम्हारा दोस्त ही है न ऐसा करना पहली बार मजाक लग सकता है पर इससे बच्चे के मन में रिश्तों को लेकर उलझन पैदा हो सकती है। इसलिए उनसे इस तरह की बातें ना करें.
यदि आप कहेंगे कि हमारा बच्चा तो बहुत होशियार है उसे अच्छे ग्रेड तो मिलने ही ही थे. इससे वो आगे चलकर गोल्डन चाइल्ड सिंड्रोम का शिकार हो सकता है. वहीं कम ग्रेड लाने पर कहना कि तुम मूर्ख हो इसलिए बी ग्रेड मिला, उसे आत्मशंका में डाल सकता है. इसलिए परिणाम के बजाय हमेश प्रयास पर ध्यान केंद्रित करने वाले वाक्य कहें. जैसे- उनसे कहें कि मैं खुश हूँ कि आप इतने अच्छे नंबर लाए आप इस बारे में क्या सोचते हो? या फिर मुझे लगता है आपको मैथ में और काम करने की जरूरत है आपको क्या लगता है?
कुछ बच्चे ज्यादा बोलते है तो कुछ दूसरों के सामने बोलने में म हैं। पर इससे एक बेहतर या दूसरा कमतर नहीं होगा उनके स्वभाव का हिस्सा है जो ज्यादा बोलते हैं वे आसानी से घुल-मिल सकते हैं वहीं कम बोलना असर रचनात्मकता और सहानुभूति से संबंधित होता है। इसलिए उन्हें शर्मिंदा करने के बजाय उनके भावों को समझने में मदद करें जैसे अगर ये गुस्सा है तो कहें अगर मैं तुम्हारी जगह होती तो मुझे भी आता पर ऐसे चिल्लाकर बात नहीं करती.
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